सेहत

क्विक कॉमर्स कंपनी ब्लिंकिट ऐप के जरिए बुक कर 10 मिनट में मिलेगी एंबुलेंस सेवा

दिल्ली के तिमारपुर में रहने वाले अशोक गुप्ता कैंसर के मरीज हैं और इलाज के सिलसिले में उनका अस्पताल आना जाना लगा रहता है. शुक्रवार तीन जनवरी को अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई और परिवार को लगा कि उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए.

सरकारी एंबुलेंस बुलाने के लिए जब परिवार के सदस्यों ने 102 नंबर पर फोन किया तो कनेक्शन लगा ही नहीं. कई बार नंबर मिलाने पर भी फोन नहीं लगा. उसके बाद परिवार ने सोचा कि सरकारी नहीं तो निजी एंबुलेंस ही बुला ली जाए. उसके लिए भी जो फोन नंबर उनके पास उपलब्ध थे, उन पर किसी ने फोन नहीं उठाया.

एंबुलेंस की कमी

थक हार कर परिवार ने ऊबर के ऐप से एक बड़ी गाड़ी टैक्सी के रूप में बुक की और अशोक गुप्ता को उसमें लिटा कर अस्पताल पहुंचाया.

यह कोई अनोखी घटना नहीं है. दिल्ली ही नहीं देश के कोने कोने में लोगों को अक्सर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है. इसका कारण है भारत में एंबुलेंस की कमी.

अंतरराष्ट्रीय मानक कहते हैं कि हर 50,000 लोगों पर एक एम्बुलेंस होनी चाहिए, जबकि भारत में केंद्र सरकार की राष्ट्रीय एम्बुलेंस सेवा (एनएएस) के तहत एक लाख लोगों पर एक बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) एंबुलेंस है.

यह वही एम्बुलेंस है जिसे बुलाने के लिए 102 नंबर डायल करना होता है. जीवन बचने की सुविधाओं वाले एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट (एलएस) एंबुलेंस का अनुपात हर पांच लाख लोगों पर एक एंबुलेंस का है.

सोनू विश्वकर्मा

लाले विश्वकर्मा, "गूँज सिंगरौली की" डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक और संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में कई वर्षों का अनुभव है और वे निष्पक्ष एवं जनसेवा भाव से समाचार प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।

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