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उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचाने के लिए बड़ा कदम, बढ़ाए गए चीड़ की पत्तियों को इकट्ठा करने के दाम

इसके अलावा चीड़ के पेड़ से निकलने वाला लीसा (एक प्रकार का द्रव जो पेट्रोल की तरह आग पकड़ता है), चीड़ का फल ये सब जंगलों की आग को भड़काने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

जगंलों की आग की वन सम्पदा को तो नुकसान होता ही है लेकिन आग लगने से पर्यावरण को भी नुकसान हुआ है. राज्य में सबसे ज्यादा जंगलो में आग चीड़ के जंगलों में न सिर्फ लगती है बल्कि चीड़ की पत्तियों जिसे पिरूल बोला जाता है उसमें भी लगती है. 

उत्तराखंड में जंगलों की आग को नियंत्रित करने के लिए वन विभाग ने पिरूल (चीड़ की पत्तियां) के एकत्रीकरण के लिए 10 रुपये प्रतिकिलो दाम तय किए हैं. इससे पहले 3 रुपये प्रतिकिलो की दर से यह ग्रामीणों को दिया जाता था.

उत्तराखंड राज्य में हर साल जंगलो में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं. जगंलों की आग की वन सम्पदा को तो नुकसान होता ही है लेकिन आग लगने से पर्यावरण को भी नुकसान हुआ है. राज्य में सबसे ज्यादा जंगलो में आग चीड़ के जंगलों में न सिर्फ लगती है बल्कि चीड़ की पत्तियों जिसे पिरूल बोला जाता है उसमें भी लगती है. 

इसके अलावा चीड़ के पेड़ से निकलने वाला लीसा (एक प्रकार का द्रव जो पेट्रोल की तरह आग पकड़ता है), चीड़ का फल ये सब जंगलों की आग को भड़काने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

यही वजह कि राज्य में पूर्व की सरकारों ने और वर्तमान धामी सरकार ने जगंलों को आग से बचाने के लिए चीड़ की पत्तियों को इक्कट्ठा करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया है. इस अभियान में ग्रामीण महिलाओं, पुरुषों सहित युवाओं को शामिल किया गया है ताकि उनको रोजगार भी मिल सके ओर वन संपदा, पर्यावरण की रक्षा भी हो सके.

इसलिए राज्य सरकार ने चीड़ की पत्तियों को इक्कठा करने के लिए 10 प्रतिकिलो दर से दाम बढ़ाये हैं. इसके लिए बाकायदा राज्य सरकार ने एक आर्डर भी जारी किया है जिसमें 3 रुपये प्रति किलो की जगह 10 रुपये प्रति किलो की दर से भुगतान किए जाने की बात कही गई .है इसके लिए 50 करोड़ का बजट भी रखा गया है.

सोनू विश्वकर्मा

लाले विश्वकर्मा, "गूँज सिंगरौली की" डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक और संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में कई वर्षों का अनुभव है और वे निष्पक्ष एवं जनसेवा भाव से समाचार प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।

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