पहलगाम हमले के बाद भी पाकिस्तान पहुंच रहा भारतीय सामान, कंपनियों का तरीका जानकर हैरान हो जाएंगे आप जानिए बहुत कुछ डिटेल्स में
कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए दिल दहला देने वाले आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में और खटास भर दी. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई,

By लाले विश्वकर्मा
कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए दिल दहला देने वाले आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में और खटास भर दी. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई, जिसके बाद दोनों देशों ने सख्त कदम उठाए. भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार लगभग ठप हो चुका है, लेकिन क्या आप जानते हैं?
इसके बावजूद भारतीय सामान चुपके-चुपके पाकिस्तान की दुकानों में बिक रहा है.
सवाल है कैसे? आइए, सबकुछ आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं. 10 अरब डॉलर का सामान, वो भी चोरी-छिपे! ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक ताजा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि हर साल 10 अरब डॉलर से ज्यादा का भारतीय सामान तीसरे रास्तों से पाकिस्तान पहुंच रहा है. यानी, सीधा रास्ता बंद होने के बाद भी व्यापारी ‘जुगाड़’ निकाल रहे हैं. ये रास्ते हैं, दुबई, सिंगापुर और कोलंबो जैसे बड़े बंदरगाह. इन जगहों पर भारतीय सामान पहुंचता है, फिर एक खास जादू होता है, और वो सामान पाकिस्तान की मंडियों में चमकने लगता है.
कैसे काम करता है ये ‘जादू’?
अब सवाल ये है कि आखिर ये सामान पाकिस्तान कैसे पहुंच रहा है, जब दोनों देशों के बीच व्यापार पर सख्त पाबंदी है? असल में ये सब एक ट्रिक से हो रहा है. भारतीय कंपनियां अपने सामान को दुबई, सिंगापुर या कोलंबो जैसे बंदरगाहों पर भेजती हैं. वहां ये सामान ‘बॉन्डेड वेयरहाउस’ में रखा जाता है. ये वेयरहाउस ऐसी जगह हैं, जहां सामान को बिना टैक्स दिए स्टोर किया जा सकता है, क्योंकि इसे अभी ‘रास्ते में’ माना जाता है.
अब यहीं पर असली खेल शुरू होता है.
इन वेयरहाउस में सामान के लेबल और कागजात बदल दिए जाते हैं. उदारहण के तौर पर, भारत में बना सामान ‘मेड इन यूएई’ या ‘मेड इन सिंगापुर’ बन जाता है. फिर ये सामान बड़े आराम से पाकिस्तान पहुंच जाता है, और किसी को कानों-कान खबर नहीं होती.
मुनाफा भी कम नहीं!
इस ट्रिक से कंपनियों को दोहरा फायदा हो रहा है. पहला, वो भारत-पाकिस्तान व्यापार पर लगी रोक को चकमा दे रही हैं. दूसरा, इस घुमावदार रास्ते की वजह से सामान की कीमत बढ़ जाती है, और मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. उदाहरण के लिए, मान लीजिए एक कंपनी भारत से 1 लाख डॉलर के ऑटो पार्ट्स दुबई भेजती है. वहां लेबल बदलकर इसे ‘यूएई का सामान’ बनाया जाता है, और फिर पाकिस्तान में इसे 1.3 लाख डॉलर में बेचा जाता है. इस बढ़ी कीमत में स्टोरेज, कागजात और ‘बंद बाजार’ तक पहुंचने का खर्च शामिल होता है.
कानूनी है या नहीं?
अब बड़ा सवाल ये है कि क्या ये तरीका कानूनी है? GTRI की रिपोर्ट कहती है कि ये ट्रांसशिपमेंट मॉडल पूरी तरह गैरकानूनी तो नहीं, लेकिन इसे ‘कानून के किनारे’ चलने वाला खेल जरूर कह सकते हैं. ये दिखाता है कि व्यापारी कितनी चालाकी से व्यापार को जिंदा रखने के रास्ते ढूंढ लेते हैं,
भले ही हालात कितने ही मुश्किल क्यों न हों.
पहलगाम हमले जैसी दुखद घटनाओं के बाद भी व्यापार का पहिया रुकता नहीं. कारोबारी दुनिया में ‘रास्ते’ हमेशा निकल आते हैं, चाहे कितनी भी पाबंदियां क्यों न हों. लेकिन साथ ही ये सवाल भी उठता है कि क्या ऐसे तरीकों से व्यापार करना सही है?