Singrauli News : सड़क पर अराजकता, ट्रैफिक संभालने वाला खुद नदारद जनता त्रस्त, अधिकारी मस्त सवालों के घेरे में व्यवस्था
लल्लू ने हटवाया था, शाह ने क्यों दिलाया दोबारा सहारा? मुआवजे के खेल में उलझा विभाग, चंगु-मंगू पर टिकी जिम्मेदारी

गूंज सिंगरौली की कार्यालय बरगवां सिंगरौली
एसी कमरे से बाहर नहीं निकलते यातायात प्रभारी, जनता बेहाल शहर की सड़कों पर जाम और अव्यवस्था ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। यातायात व्यवस्था संभालने वाले अधिकारी फील्ड में सक्रिय होने के बजाय दफ्तर और एसी कमरे तक ही सीमित रहते हैं। ऐसे में आम नागरिकों की समस्याएँ लगातार बढ़ रही हैं।
पूर्व विधायक के दबाव में हुआ था तबादला
12 फरवरी 2022 को तत्कालीन पुलिस महानिदेशक, मध्यप्रदेश को पत्र लिखकर सिंगरौली के पूर्व विधायक रामलल्लू वैश्य ने यातायात प्रभारी दीपेंद्र सिंह कुशवाह को हटाने की मांग की थी।
उन पर आरोप था कि वे जनता की समस्या सुनने की बजाय व्यक्तिगत स्वार्थ और मनमानी में अधिक रुचि रखते हैं। नतीजतन, तबादले का आदेश जारी हुआ और उन्हें जिले से बाहर भेज दिया गया।
स्थानांतरण के बाद भी सिंगरौली से नहीं टूटा मोह
तबादले के बावजूद दीपेंद्र सिंह कुशवाह का लगाव सिंगरौली से खत्म नहीं हुआ। सूत्रों की मानें तो जिले में “मुआवजे” का खेल उन्हें बार-बार खींच लाता है। शरीर भले ही जिले से बाहर चला गया था, लेकिन मन और दिमाग सिंगरौली में ही रह गए थे।
काफी प्रयासों और “जुगाड़” के सहारे वे दोबारा यातायात प्रभारी की कुर्सी तक लौट आए।
“लल्लू” से बैर, “राम” से लगाव — आखिर क्यों?
जब उनका तबादला हुआ था तो दीपेंद्र सिंह कुशवाह ने पूर्व विधायक रामलल्लू वैश्य को दुश्मन की तरह देखा। लेकिन आज वही साहब मौजूदा विधायक रामनिवास शाह के करीब नज़र आ रहे हैं।
यहाँ बड़ा सवाल खड़ा होता है कि —
- आखिर विधायक शाह ने क्यों ऐसे अधिकारी को दोबारा जिम्मेदारी सौंपी, जिनकी कार्यप्रणाली पहले जैसी ही है?
- यदि विधायक ने उन्हें पदस्थ नहीं कराया तो फिर हटाने की कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही?
जनता के बीच यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि इसमें मजबूरी है या फिर कोई राजनीतिक समीकरण।
ट्रैफिक सिस्टम “चंगु-मंगू” के भरोसे
इस समय शहर की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से “चंगु-मंगू” के हवाले है। ट्रैफिक जाम, नियमों की अनदेखी और अव्यवस्था ने नागरिकों को परेशान कर दिया है।
लोगों का कहना है कि यातायात प्रभारी का ध्यान अब ट्रैफिक सुधार पर नहीं, बल्कि अगली कंपनी और मुआवजे के “गणित” पर केंद्रित है।
जनता का तंज — “मुंह में राम, बगल में छुरी”
साहब अध्यात्म और आंतरिक शांति की बातें तो करते हैं, लेकिन मुआवजे के खेल में उलझकर खुद भी अशांत रहते हैं।
लोग कहते हैं कि उनकी कथनी और करनी में फर्क साफ दिखाई देता है —
“बातें राम की, लेकिन नीयत मुआवजे की।”