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नेहरू की सांप को पानी पिलाने की नीति मोदी ने दिखाया 56 इंच का सीना सिंधु जल संधि पर रोक पर बोले निशिकांत दुबे जानिए डिटेल्स में

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े राजनयिक फैसले लिए हैं

By लाले विश्वकर्मा 

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े राजनयिक फैसले लिए हैं। इन कदमों में 1960 में हुई सिंधु जल संधि को रोकने का निर्णय सबसे बड़ा और प्रतीकात्मक माना जा रहा है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने इस फैसले का जोरदार स्वागत करते हुए कहा,

पाकिस्तानी अब पानी के बिना मरेंगे, यही है 56 इंच का सीना-

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को निर्णायक बताते हुए इसे देश की आत्मरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया उनका यह बयान पीएम मोदी की “56 इंच के सीने” वाली राजनीतिक उपमा पर आधारित था, जो भाजपा नेताओं द्वारा निर्णायक नेतृत्व और सख्त फैसलों के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल होती है।

सरकार के अन्य कड़े फैसले

– वाघा-अटारी सीमा को बंद किया गया है।- पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीज़ा छूट योजना पर रोक लगाई गई है।
पाक उच्चायोग में सैन्य सलाहकारों को “अवांछित व्यक्ति” घोषित किया गया है।- नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास में कर्मचारियों की संख्या घटाकर 30 की गई है।ये फैसले प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई 2:30 घंटे की कैबिनेट सुरक्षा समिति (CCS) बैठक के बाद घोषित किए गए, जिसमें गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर मौजूद थे।

सिंधु जल संधि क्या है?

1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह संधि हुई थी। इसके तहत भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) पर पूर्ण अधिकार मिला। पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का उपयोग करने की अनुमति दी गई।

हालांकि भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित सिंचाई और जलविद्युत परियोजनाओं की अनुमति भी दी गई थी, जिससे पाकिस्तान को आशंका रहती रही है कि भारत जल प्रवाह को प्रभावित कर सकता है।

क्या संधि तोड़ी जा सकती है?

सरकार ने संधि को “रोकने” की बात कही है, लेकिन कानूनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कदम चुनौतीपूर्ण है। सिंधु जल संधि को अब तक तीन युद्धों और कई तनावों के बावजूद भी लागू रखा गया था, जिससे इसकी मजबूती का अंदाजा लगता है।

सोनू विश्वकर्मा

लाले विश्वकर्मा, "गूँज सिंगरौली की" डिजिटल न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक और संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में कई वर्षों का अनुभव है और वे निष्पक्ष एवं जनसेवा भाव से समाचार प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।

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